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Tuesday 8 December 2015

क्यों लेते हो दहेज़??

एक सन्देश उन तमाम लड़कों के नाम जो
 मेरे ही हमउम्र के हैं
जिनमें से कोई आईएअस, कोई आरएअस
, कोई अध्यापक, कोई पीओ,
तो कोई डॉक्टर बनता हैं पढ़-लिखकर!
सुनो! एक बात सुनाती हूँ-
जरा गौर से सुनना....
आपने इतनी पढ़ाई की हैं इस लेवल तक पहुंचे हो तो
 आज को कल से थोड़ा बेहतर बनाओ
फिर से कल को ही क्यों दोहराना??
क्यों लेता हैं आज का युवा वर्ग भी दहेज़....
वो बिल्कुल साफ़ मना क्यूँ नहीं कर देता....
आप एक अच्छे काम के लिए महज कुछ
 शब्द बोलकर अपनों का सामना तक नहीं कर सकते....
आप गलत के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकते,
 आपमें इतनी हिम्मत भी नहीं हैं कि
आप अच्छा व बुरा समझ सकते हैं
तो आप उस पोस्ट के क़ाबिल कैसे हो सकते हैं??
आप एक जिम्मेदार नागरिक तो कभी हो ही नहीं सकते हैं...
क्यों ले लेते हो बिना कुछ बोले लाखों रुपये दहेज़ में??
हां माना कि बड़ों के सामने संस्कारी बच्चे कैसे बोल सकते हैं
तो जब बात पसंद नापसंद की हो तब कैसे बोला जाता हैं???
 तब कहाँ चली जाती हैं आपकी हय्या व शर्म....
तब तो नहीं कहते नहीं हमें यह हक नहीं हैं
हम तो संस्कारों वाले हैं....
एक बार कोशिश करके तो देखिए कहिए
उनसे कि हम शादी लड़की से करते हैं
हमें जिंदगी में एक अच्छे हमसफ़र की जरुरत होती हैं
ना कि ऐशो आराम की....
जो बड़े आपके लिए अपनी ख्वाहिशों को भुला तक देते हैं
वो जरुर आपकी अच्छी पहल को भी तवज्जो देंगे ही....
वरना मेरा तो एक ही सवाल हैं क्यूँ ले लेते हो दहेज़
कमाकर दिये थे क्या आपने....
या करते हो एक पिता से उसकी बेटी का सौदा??
सबसे बड़ा हथियार बस लोगों को अच्छे के लिए समझाओ
तो एक ही वाक्य लोग क्या कहेंगें??
धत....कौनसे लोग....??
यह आप और हम मिलकर ही तो बनते हैं लोग....
जब आप बुरा करते हो तब तो इतना नहीं सोचते हो??...
जब लड़ना हो तब लोग कहीं नजर नहीं आते हैं क्या??
एक अकेली लड़की अपना सब कुछ छोड़कर आपकी हर चीज़ को अपनाती हैं वो अपने बचपन के उस घर को ऐसे भुला देती हैं जैसे कि वो कभी उसका था ही नहीं....
लड़के अपने ससुराल में बेवजह जरा चार दिन भी रहकर बताएँ....कितनी शक्तिशाली होती होगी ना वो
जो कि दहेज़ लेने के बाद भी विश्वास करती हैं
और उसी रिश्ते में खो जाती हैं.....
आपके घर को अपने घर से भी ज्यादा अपना समझकर संभालती हैं, वक़्त-बेवक्त सबको साथ लेकर चलती हैं,
सबको मोतियों की माला सा साथ पिरोकर चलती हैं,
 गलती ना होने पर भी बेवजह किसी के भला-बुरा कहने पर भी सब कुछ चुपके से सह जाती हैं ताकि कोई उसके जन्म को ना ललकारे....खुद दुखी हो भी जाती हैं अकेले में पर सबकी खुशियों का ख्याल बख़ूबी रखती हैं वो....
यह मत सोचना कि हम लोग उन्हें कमाकर खिलाते हैं...नहीं, कभी नहीं वो खुद अपना कमाकर खाती हैं....हिसाब लगा लेना घर का काम किसी भी हाल में नौकरी से कम नहीं होगा....
हर चीज़ वो अपनी मेहनत से पाती हैं
तो फिर आप दहेज़ किसलिए लेते हो??
अगर शादी रिश्ता ना होकर व्यापार ही हैं तो क्यूँ नहीं कर लेते सबके सामने ही स्वीकार की हम तो सौदा ही कर रहें हैं लड़की का.....जानती हूँ बात थोड़ी कड़वी जरुर लगेगी पर सच यहीं हैं😐
दहेज़ तो एक खतरनाक बीमारी हैं....इस दहेज़ रुपी दानव को मिटाना हमें ही हैं ताकि कोई भी पिता बेटी को बोझ ना समझें😊
जय हो!

Tuesday 20 October 2015

जिंदगी😇...जी रहे हैं हम!

ह्म्म्म.....कुछ मत सोचिए बस जीते रहिए.....हमेशा आप सही-गलत का फैसला करते रहेंगें तो केवल जजमेंट में ही अपनी जिंदगी गंवा देंगे
ऐसा नहीं हैं कि मेरी जिंदगी में आए तुम पहले इन्सान थे.....ऐसा भी नहीं हैं कि तुममें कोई खामी नहीं हैं.....ऐसा भी नहीं हैं कि पहली दफा ही तुम पर मर मिटने का जी कर गया हो....ऐसा भी नहीं हैं कि तुम्हारे साथ सुनहरे सातों रंगों के मैंने सपने देख लिए हो......ऐसा भी नहीं हैं कि बिना तुम्हारे साथ के मैंने जिंदगी को बेरंग सा जीने का ठान लिया हो.....ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं हैं....बस बात इतनी सी हैं कि अगर कोई भी इन्सान औरतों की इज्जत करता हैं तो वो मुझे इस दुनिया का एक समझदार व अच्छा इन्सान लगता हैं और मैं उस इन्सान को अपने दिल में जगह दे देती हूँ.....तुम भी थे बिल्कुल ऐसे ही बाकी तुममें कुछ भी खाश नहीं था.....कभी-कभार कुछ शब्द हमारा दिल दुखा जाते हैं लाजमी भी हैं जरुरी तो नहीं हैं सबकी पसंद एक जैसी ही हो.....और बाबा रही बात प्यार की तो सच बताऊ तुम थोड़े निरे बुद्दू हो......मैं तो बड़ी जिन्दादिली से जीना पसंद करती हूँ इसलिए मुझे तो इस दुनिया के हर इन्सान व हर चीज़ से प्यार हैं......बात करूँ इस दुनिया के सबसे पवित्र प्यार की तो सच बताऊ वो केवल हमारे माता-पिता ही कर सकते हैं हमसे इससे ज्यादा मुझे नहीं पता.....मेरे गुस्सा करने भी माँ का एक लफ्ज़ तक ना कहना.....मैं जब भी किसी एग्जाम में पास नहीं होती तो रोने लग जाती तब मेरी माँ का मेरे पास बैठकर मुझे फिर से सारी दुनिया जीत लेने का सपना दिखा देने वाला अंदाज़ तो हमेशा ही काबिले तारीफ़ रहा हैं.....अब देखो फिर कभी और लिखेंगें प्यार पर पर सच बताऊ प्यार तो तब भी हैं जब मैं सब्जी लाने जाती हूँ और मेरे बिना कुछ कहे ही वो जो मुझे चाहिए होता हैं दे देते हैं सब्जी में कितना ख्याल रखते हैं वो अजनबी भी हमारी पसंद का......फलों वाले अंकल भी ऐसा ही करते हैं.....फिर भी तुम कहते हो मैं गलत हूँ.....हाँ हूँ गलत....सिखा हैं मैंने गलतियां करना....नहीं बन सकती मैं परफेक्ट और बनना भी नहीं......किसी का ख्याल रखना किसी की परवाह करना मेरे लिए गलत नहीं हैं और कभी हो भी नहीं सकता
# धत्त यह विचार भी ना पता नहीं कैसे-2 बहका जाते हैं......सब कुछ लिख डालना भी तो सही ही हैं

Monday 19 October 2015

हां नहीं हैं विश्वास:(

चलो अब फिर से अपनी इस दुनिया को थोडा वक़्त देते हैं:)
तुमने एक पल में ही मेरी धडकनों को कैसे छलनी कर दिया था यह कहकर कि तुम्हें तो मुझ पर विश्वास ही नहीं हैं
एक पल को तो बेहद बुरा लगा, बहुत गुस्सा आया तुम पर
अगले पल को होश संभाला तो पाया कि हां तुमने कुछ गलत भी तो नहीं कहा,
हां नहीं हैं मुझे तुम पर विश्वास :)
जनाब विश्वास बनाना पड़ता हैं
तुम पर तो मुज्गे अपने आपसे ज्यादा विश्वास था
पर एक बार कुछ खो जाए तो वो वापिस पहले जैसा कभी नहीं रह पाटा पता पाता हैं:(
हा नहीं हैं तुम पर विश्वास तब से जब टी तुमने मेरे अलावा भी किसी और की ओर हाथ बढाया था साथ देने के लिए
फिर चाहे उस वक़्त कोई ग़लतफ़हमी ही वजह क्यूँ ना रही हो?
हां नहीं हैं विश्वास तब से जब तुमने मुझे असफल होता देखकर मुज्ग्से मुझसे मुहं मोड़ लुया लिया था
हां नहीं हैं विश्वास तब से जब तुमने मुझे गिरता हुआ देखकर भी मेरे क़दमों को संभाला नहीं था:(
हां नहि नहीं हैं विश्वास तब से  जब तुमने अपनी जिंदगी को मेरे साथ बांटना बंद कर दिया😐
धत....नहीं चाहिए अब तुम्हारा विश्वास खुश हूँ मैं सुन रहे हो ना तुम....नहीं नहीं पढ़ रहे ही ना??

बहुरुपिया😊

बहुरुपिया मतलब अलग-2 रूप धारण करने वाला......बचपन से मैं बहुरूपियों का खेल देखती आई हूँ.....बहुत छोटी थी मैं....याद हैं मुझे पुरे गांव में खबर फ़ैल जाती थी कि आज बहुरुपिया आया हैं....उसके आते ही....खासकर हम बच्चों को तो उसके आते ही पता चल जाता हैं.....फिर सात दिन के लिए हमारी दुनिया वो ही हो जाती थी.....दिनभर सोचना आज क्या बनेगा बहुरुपिया....और शाम को उसके आते ही उसका साथ एक पल को भी ना छोड़ना....वो आगे हम बच्चे पीछे......पता ही नहीं चलता था कब उसके रंग में हम भी रंग जाते थे.....सच बताऊ तो वो हमारे लिए सलमान खान से भी ज्यादा मायने रखता था.....हम उसके साथ दौड़ते-भागते बिना छोटे-बड़े का फर्क किये.....तब पता ही नहीं चला था कि यह तो बेचारा सबके सामने रूप बदलता तो हैं आगे कि दुनिया में तो ऐसे इंसानों से भी सामना होगा जो गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलेंगें वो भी बिना किसी को बताये केवल अपना स्वार्थ साधने के लिए......

खेर शायद हमें कुछ छोटी-2 चीजों को साधकर रखना चाहिए क्यूंकि कुछ लोगों का पेट हो सकता हैं केवल उन्हीं छोटी चीजों की वजह से ही पाला जाता हो...

अभी इन दिनों फिर से बहुरुपिया आया हैं.....पर हम बच्चों की जगह दुसरे बच्चों ने ले ली हैं....हम थोड़े बड़े हो गए हैं इतने बड़े कि बहुरुपिए की फोटो तक ले सकते हैं

सच बचपन जितना अमीर कोई नहीं हो सकता.....उसकी अमीरी का अपना आनंद हैं.....एक दुआ मांगू तो कबूल करोगे ना भगवानजी???

जीने दो ना एक बार फिर से बचपन.....छोटा-बड़ा को पीछे छोड़कर सब समान हैं कि भावना सिख लेने दो ना....

वैसे मेरे पास एक आईडिया हैं पर क्या करूँ अगर मैं बच्चों सी जीने लगी तो कुछ तो लोग कहेंगें ना चलो छोड़ो भी अब बडपन को ही जी लेते हैं😊

Friday 19 June 2015

यस वी आर बैंकर्स☺


जिंदगी कभी आसान नहीं होती हैं, पर इससे दोस्ती करने पर वाकई बहूत खुबसूरत सी लगती हैं यह....दो पल मुस्कराहट हैं यह तो चार शिकायतों की कहानी...समझ ही नहीं पाती हूँ बहुत बार इसे...अच्छा व बुरा सब-कुछ तो समेटकर रखती हैं यह अपने में....किसी भी फील्ड में जाकर हम पहली बार काम करते हैं तो हमें बहुत सारी सम्स्यओं का सामना करना ही पड़ता हैं किसी को कम तो किसी को ज्यादा पर वो वक्त् कहा आसान लगता हैं....नए बच्चों को अपनी जगह अपने दम पर बनानी ही पड़ती हैं.....सीनियर्स की आँखें मासुम सी जान को पल में डरा देती सि नजर आती ही हैं....तुम्हें कुछ नहीं आता....उफ़्फ़ ऊपर से गलती से भी कोई गलती हो जाए तो शामत आ ही जाती हैं.....पर ना...ना...
वी आर बैंकर्स....हम इतनी आसानी से हार नहीं मान सकते....हमें आगे बढ़ना ही होगा....अपनी जगह बनानी ही होगी....सीनियर्स को बताना ही होगा कि सर हमारी और आपकी जनरेशन अलग हैं पर इन्सानियत हमेशा एक जैसी ही होती हैं....हमारे लिए भी कोई सी भी राह व मंजिल उतनी आसान नहीं थी जितना आपको लगता हैं.....हमें कुछ नहीं आता तो आप सीखा दीजिए....हम आप ही के तो बच्चें हैं दो कदम को उंगली थामकर चलना सीखा दीजिए😇कोई भी परफेक्ट नहीं होता हैं और हम भी नहीं हैं.....पर मैं खुशनसीब हूँ मेरे ऑफिस के लोग बेहद ही अच्छे हैं....छोटी-बड़ी प्रोब्लम्स तो जिंदगी में वैसे बी हमेशा चलती ही रहती हैं:)
प्राउड टू बी ए बैंकर😆