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Thursday 9 January 2014

रिश्ते तो नहीं रिश्तों से

दिल से आवाज आयी तो एक पल के लिए सोचा
कि इस बावरे की ना सुनू तो ही अच्छा हैं वरना
अभी पता नहीं इसकी वजह से और कौनसी आफत  आ जायेगी ???
तभी मेरा हीरा मन बोल पड़ा कि-
तुम्हें पता हैं रिश्ते कांच से होते हैं
जरा सी भूल क्या हुयी कि टूट जाते हैं
और फिर से सम्भालने की कोशिश करो तो
हमेशा चुभन ही होती हैं !!!
मैं थोड़ा ठहरी इसकी बात का विचार करने के लिये कि
तभी मेरा दिमाग बोलने लगा और सच में आज पहली
बार मुझे दिमाग की कही गयी कोई बात अच्छी लगी थी
आज से दिल की सुनना बंद.……
दिमाग बोला-
"रिश्ते कभी टूटते ही नहीं हैं 
अपनों का तो अहसास हर पल हमारे साथ होता हैं 
और अगर आपको लगता हैं कि टूटा हैं तो 
वो रिश्ते थे ही नहीं अपने:-)"
रिश्तों में भला कहाँ होता हैं 
अपना-पराया,मेरा -तुम्हारा 
छोटा -बड़ा ,भला -बूरा !!
"आगे बढ़ते कदम पीछे छूटते इंसान "
पैसे दुनियादारी.......... 
कितनी उलझन सी होती हैं ना कभी ?????
खाश जिंदगी सुलझी हुयी सी हो 
ना कि यू पन्नों में लपेटी हुयी सी 
मिल जाय हर मुश्किल का हल किसी जगह 
मिट्ठी की कच्ची दीवारों पर लिखा हुआ तो क्या बात हो ?????
खाश हर रात के अनसुलझे सवाल का जवाब 
मिल जाये उसी सूबह किसी एक लिफाफे में कैद किया हुआ :-)
कुछ चीजों को सम्भाल पाना भला कहाँ आसान होता हैं 
जैसे रिश्तों को ,अपनों को ,अपने आपको.......:-)
"बस मैं ही तो हू गिरी हू तो क्या हुआ 
फिर से उठेंगे किसी रोज चलने के लिये 
भागने के लिये ,तुम्हारा खोया साथ फिर से पाने के लिये :-)" 

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