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Monday 11 November 2013

विश्राम :-))

साहब चलो २५१ रू. तो दे ही दो :-))
पहले बताओ तुम्हारा नाम क्या हैं ????
जी "विश्राम ":-))
अनायास ही मैं यह नाम सुनकर थोड़ा ठहर गयी थी ,
अजीब लगता हैं ना भला ऐसा भी कोई नाम हो सकता हैं ????
  तभी सहसा मेरे दिमाग में कुछ बचपन की यादें उभर आयी 
मैं अपने आपसे ही उलझ बैठी 
क्या सारिका तु तो बड़ी-2 करती हैं कि मेरी याद्दाश्त बहुत अच्छी हैं 
तो फिर आज क्या हुआ तू उस विश्राम को कैसे भूल गयी ???????

हा अब याद आया यह बात तब की हैं जब मैं शायद 7th कक्षा में पढ़ती थी 
पास वाले अंकल के घर में एक शहर का लड़का आया था 
तब तक मेरा किसी भी शहर के लोगों से कम ही नाता था 
क्यूँकि मैंने अपनी सारी दूनिया को बस अपने गांव के चारों और तक समेट रखा था :-))
अक्सर हम बच्चें शाम को खेला करते थे एक दिन वो भी आ गया हमारे साथ खेलने 
आया ही था कि हम लोगों ने खेल को छोड़कर बस उसकी क्लास लेनी शुरू कर दी 
जो सवाल हमने पुछे वो सब तो मुझे याद नहीं पर कुछ बातें जरूर याद हैं -

"तुम्हारा नाम क्या हैं ?????
वो -विश्राम !!!!!
तुम कहां के हो ????
वो -किशनगढ़ शहर का हू मैं !!
तुम्हारे पापा क्या करते हैं ???????
वो -मेरे पापा का कुछ साल पहले निधन हो गया, माँ कहते हैं कि तब मैं बहूत छोटा था :-(
तुम्हारी पढ़ाई के पैसे ????
वो -मेरी माँ मेरी हर जरूरत को पूरा करते हैं वो मुझसे बहूत प्यार करती हैं 
क्योंकि इस दूनिया में मेरे अलावा उनका अपना कोई नहीं हैं :-)"

फिर वो हमेशा हम लोगों के साथ खेलता था और 
वैसे भी मेरी और उसकी बहूत बनती भी थी पर मुझे उसकी साथ की गयी बातों में से केवल एक ही बात याद हैं :-)))

"जब भी मैं उसे देखती थी मैं बिल्कुल विश्राम की स्थिति में खड़ी होकर बोलती  :-विश्राम 
फिर वो मेरी तरफ देखकर बिल्कुल तनकर खड़ा होता और बोलता :-सावधान !!!!!
बस इसी बात पे हम दोनों हंस पड़ते थे :-))"

सावन की तरह आया था बस कुछ दिन हरियाली जरुर रही थी 
पर फिर से पतझड़ आने को बेताब थे सो शायद उसे भी जाना ही था 
और वो चला गया :-(

(जब जाना ही हैं तो ,क्यों आते हैं मेहमान !!)

तभी सुनाई दिया सरिता इन्हें खाना खिला दो 
हा यह बात मेरे पापाजी ने कही थी उनके सामने जो विश्राम नाम का इंसान खड़ा 
था उसे खिलाने के लिये बोल रहे थे 
उफ्फ कहाँ और किस जहां में खो गयी मैं भी ना 
तभी मैंने कहा ठीक हैं अभी लायी पर उसने मना कर दिया 
तभी मैं सोचने लगी कहीं यह वो तो नहीं ???????
नहीं ,नहीं यह नहीं हो सकता इसके तो माँ-बाबा ,भाई-बहिन सब तो हैं 
और फिर यह तो "बहुरूपिया" हैं यह तो वो हो ही नहीं सकता :-))

पर यह जो कोई भी हैं मैं इसे भी तहेदिल से शुक्रिया बोलना चाहती हू 
इसकी वजह से आज एक बार फिर से मैंने अपना अच्छा सा बचपना जिया था :-))

मुझे नहीं पता अब वो कहाँ हैं और कैसा हैं ?????
पर उम्मीद करती हू जहाँ भी हो अच्छा व खुश हो 
माँ का ख्याल रखने वाला एक अच्छा बेटा बना हो :-)))


पता नहीं ज़िंदगी के कितने और कैसे मोड़ पर हम एक-दुसरे से मिले होंगे 
पर शायद हम लोगों ने एक-दूसरे को पहचाना तक नहीं होगा 
शायद अब उसे तो मेरा नाम तक पता नहीं होगा 
सच में फिर तो मान गए कि सारिका की याद्दाशत बड़ी तेज हैं 
ऑफ्टर आल बादाम जो खाती हू असर तो दिखेगा ही ना :-)) हा हा हा। …… "


खैर इतने वर्षों में वो मुझे एक पल के लिये भी याद नहीं आया था 
पर शायद भगवानजी ने आज मुझे एक बहाना दिया था उसे याद करने का 
सो लॉट ऑफ थैंक्स "भगवानजी ":-)))


बरसों बाद ही सही पर फिर भी इस बार की दीपावली 
तुम्हें बहूत-2 मुबारक हो विश्राम :-))!!!!!!!

"सच में बहूत दिनों से डायरी के बीच में इन्द्रधनुष  को कैद कर रखा था 
आज वो पन्ना खोला कि बादल बरस पड़े :-))"!!!!!!!!!!!!


दिनांक -3th नवंबर २०१३ !!!!!!!!!!!!!

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