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Friday 29 November 2013

इंसानी फितरत :(

तुमसे बात करके हमेशा सोचा करती थी कि
खुदा अभी तो अच्छे लोगों को बनाना भुला नहीं है
तुम्हारा बेवजह हर जगह मेरा साथ देना
बिन कुछ मांगे ही मुझे अपना सब-कुछ दे देना
कायल थी तुम्हारी इस आदत की !!!!!!!!!!!!!!!
तुम्हारी बेवजह चाहत की :-))
पर नहीं ………… शायद मेरा अंतर्मन कभी
झूठ के पीछे छुपे सच को जान ही नहीं पाता है
या जानकर भी अनजान बने रहना मेरी फितरत में हैं :-))
आज तुमने मेरे सारे भ्रम तोड़ दिये
वो सब बेवजह नहीं था पर शायद कुछ मेरी समझ से परे था
ओफ्फो … माफ करना जनाब आपके कुछ एहसान जरुर है
हम पर पर अभी हम उनके तले दबे नहीं है
फुर्सत में उनका भी हिसाब चुकता कर ही देंगे :-))


"हर रोज टूटता है एक और पुराना ख्वाब 
और उस ख्वाब के साथ ही टूटती हू मैं  ,मेरा मन 
मेरी उम्मीदें ,मेरे सपने और शायद बहुत कुछ। …। :-))"

अब समझ में आया भला बिना कीमत
के भी कोई रिश्ते बनाये और निभाये थोड़े ही ना जाते
है पता हैं मुझे तुम सब समझते हो ,,,,,,,,,,मैं बावली कहीं की :-))
"जिंदगी के इस मंडप में हर ख़ुशी कंवारी हैं ,
किससे मांगने जाए ,यहाँ हर कोई भिखारी हैं :-))"

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