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Wednesday 13 November 2013

हाँ हम हैं मनचले ;-))

अक्सर मेरे जैसे नमूनों को सहन कर पाना आम लोगों
के लिये बहूत मुश्किल होता हैं ,
अनायास ही वो लोग मुझ जैसे लोगों से कुण्ठित हो
ही उठते हैं और मन ही मन सोचते हैं -

"यह छोरी नकचढ़ी हैं अभी इसे समाज में ठीक से रहना भी
 नहीं आता है भला ऐसी  भी कोई लडकियां होती हैं क्या ?????????
ढंग से सलवार-कमीज तक नहीं पहन पाती हैं :-(
पहन ले तो कभी दुपट्टा नहीं सम्भाल पाती हैं तो
कभी पायजामे में पैर फसाकर गिर पड़ती हैं
और तो और हद हो गयी बालों को ढंग से बांधना तक नहीं आता हैं
उफ्फ। …। यहाँ तो जैसे-तैसे माता-पिता सम्भाल लेते हैं
पर कल को पक्का इन्हें ही भला-बुरा सुनवायेगी :-(
खुद को मेहंदी लगाने से जीतना परहेज उससे
कहीं ज्यादा मुश्किल हैं कोन को सही से हाथ में पकड़ पाना :-))
अब इस बेवकूफ को कौन समझाये कि
औरत के सोलह क्षृंगारौ में से मेहंदी भी एक हैं
ऐसी बहुत सारी बातें हैं खैर इन लोगों के प्यार के लिये
बस इतना ही काफी हैं :-))))"

"अब मैं इन्हें कैसे समझाऊ कि मेरे जैसे लोग तीसरी दूनिया से आये हैं
उन्हें ना किसी की फिक्र हैं और ना ही किसी की चिंता :-))
बस हम लोग बगावत नहीं आजादी चाहते हैं :-)"

"जीन्स और t-शर्ट महज हमारे कपड़े हैं 
हमारा चरित्र नहीं !!!
हमें फुर्सत नहीं हैं अपनों की यादों से ही तो 
कब और कैसे चूल्हा -चौकी का काम और बालों को गूँथना सीखे ???"

देखो ना वो बूढ़ी अम्मा कितनी ललचायी नजरों से देख रही हैं 
हाँ शायद मैं उन्हें समझदार लगी हू 
इसलिए वो मुझसे बात करने को बेताब हैं 
जो कि कुछ देर पहले ही अपनी परफेक्ट बहू से 
फर्श पर पानी गीरा देने के कारण 
जहर सी कड़वी बातों के घूँट पीकर आयी हैं :-))

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